तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन
'तुमुल कोलाहल कलह में' का अर्थ *गीत की पृष्ठभूमि: प्रसाद जी के 'तुमुल कोलाहल कलह में' गीत को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि यह लिया कहाँ से गया है तथा इसका संदर्भ क्या है? पुराणों में सामान्य प्रसंगों के क्रम में स्तुति या स्त्रोत आते हैं| 'रामचरितमानस' में भी 'हरिगीतिका' आदि छन्दों में स्तुति आदि की योजना हुई है। मानस में आए ये छन्द गीत ही हैं। ये हमेशा स्तुति के रूप में ही नहीं आए हैं, यदाकदा वर्णन के क्रम में भी प्रयुक्त हुए हैं। दोनों ही रूपों में इनकी रूपरेखा आज के गीतों जैसी ही है जहाँ ये वातावरण को मुखर बना देते हैं, भावों की गहराई को बढ़ा देते हैं तथा उन्हें और स्पष्ट करने का भी काम करते हैं। प्रसाद जी का 'तुमुल कोलाहल कलह में...' भी एक ऐसा ही गीत है जो कामायनी के निर्वेद सर्ग से लिया गया है। जैसा कि ऊपर कहा गया है इस गीत को समझने के लिए इसका संदर्भ समझना जरूरी है। अतः कामायनी की कथा संक्षेप में (निर्वेद सर्ग तक) इस प्रकार है- देव संस्कृति के ध्वंसावशेष के रूप में मनु प्रलय की लहरों से किसी प्रकार से बच कर हिमालय क