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हिन्दी सिनेमा के गीत और पारसी रंगमंच

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 ('अपनी माटी' पत्रिका के अंक 43 में प्रकाशित शोध आलेख) शोध सार : इस शोधपत्र में यह बताने का प्रयास किया गया है कि भारतीय फ़िल्मों की प्रकृति पाश्चात्य फ़िल्मों से भिन्न है। भारतीय फ़िल्मों का अपना सौन्दर्यशास्त्र है, अपना रचनात्मक व्याकरण है। प्रायः भारतीय फ़िल्मों का मूल्यांकन पाश्चात्य फ़िल्मों को मानक बनाकर किया जाता है तथा इनमें नृत्य, गीत-संगीत आदि देखकर इन्हें म्यूज़िकल या ऑपेरा करार दे दिया जाता है। यह स्थिति भ्रामक और दोषपूर्ण है क्योंकि ऐसे मूल्यांकन में भारतीय फ़िल्मों की प्रकृति को समझने का प्रयास नहीं किया जाता। कोई भी रचना अपने रचनात्मक तन्त्र की उपज होती है। रचनात्मक तन्त्र की प्रकृति के अनुरूप ही रचना की प्रकृति होती है। सिनेमा एक आधुनिक दृश्य-श्रव्य कला माध्यम है। उसके पहले रंगमंच था। सिनेमा पर भी अपने पूर्ववर्ती, रंगमंच का प्रभाव पड़ा है। अतः इस शोधपत्र में भारतीय दृश्य-श्रव्य कला माध्यम की पूरी परम्परा पर दृष्टि डाली गई है ताकि इसके रचनात्मक तन्त्र की प्रकृति को समझा जा सके। और यह दिखाया गया है कि भारतीय दृश्य-श्रव्य कला की पूरी परम्परा में आरम्भ से ही संगीत की प्रधान