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तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन

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'तुमुल कोलाहल कलह में' का अर्थ *गीत की पृष्ठभूमि: प्रसाद जी के 'तुमुल कोलाहल कलह में' गीत को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि यह लिया कहाँ से गया है तथा इसका संदर्भ क्या है? पुराणों में सामान्य प्रसंगों के क्रम में स्तुति या स्त्रोत आते हैं|  'रामचरितमानस' में भी 'हरिगीतिका' आदि छन्दों में स्तुति आदि की योजना हुई है। मानस में आए ये छन्द गीत ही हैं। ये हमेशा स्तुति के रूप में ही नहीं आए हैं, यदाकदा वर्णन के क्रम में भी प्रयुक्त हुए हैं। दोनों ही रूपों में इनकी रूपरेखा आज के गीतों जैसी ही है जहाँ ये वातावरण को मुखर बना देते हैं, भावों की गहराई को बढ़ा देते हैं तथा उन्हें और स्पष्ट करने का भी काम करते हैं। प्रसाद जी का 'तुमुल कोलाहल कलह में...' भी एक ऐसा ही गीत है जो कामायनी के निर्वेद सर्ग से लिया गया है।      जैसा कि ऊपर कहा गया है इस गीत को समझने के लिए इसका संदर्भ समझना जरूरी है। अतः कामायनी की कथा संक्षेप में (निर्वेद सर्ग तक) इस प्रकार है-   देव संस्कृति के ध्वंसावशेष के रूप में मनु प्रलय की लहरों से किसी प्रकार से बच कर हिमालय क

निराला, बादल राग 5

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प्रस्तुत पंक्तियाँ परिमल काव्य संग्रह के बादल-राग 5 की हैं। इसके पहले महाप्राण निराला ने बादल राग 1,2,3 और 4 में बादल पर विभिन्न पक्षों को लक्ष्य कर के विभिन दृष्टिकोणों से लिखा है। इन पंक्तियों में उन्होंने बादलों के चाक्षुष सौंदर्य का भाँति-भाँति से बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है।         नयनों के अंजन निरंजन हो चले हैं। अर्थात कवि के अनुसार बादलों की श्यामलता जो असीम आकाश के नयनों का अंजन प्रतीत होती है वह अब हल्की हो चली है। वर्षा होते रहने से बादलों का कालापन दूर हो जाता है, कवि ने उसी ओर संकेत किया है।         बादल अस्थिर मति के हैं, अपनी दिशा तय ही नही कर पाते हैं। सो कभी इधर कभी उधर, कभी धीमे कभी तेज, कभी बहुत नीचे कभी बहुत ऊपर चंचलता से चलते हैं। वर्षा के कारण नद-नाले, सर-निर्झर सब भर गए हैं। कहीं किसी ओर भी जल की कमी नही है, हर  ओर तरल जल का कलकल प्रवाह है।          बादल किसी किशोर या नवयुवा की भाँति उत्साह से परिपूर्ण हैं। वे उत्साह में उमड़ते हैं, फिर बरसते-बरसते संकुचित होने लगते हैं और अंत में बरस-बरस कर समाप्त हो जाते हैं। पर कुछ समय बाद पुनः उमड़ने और बरसने