ठूँठ
सूखे पेड़ में भी सुंदरता दिख सकती है। और अगर मेरे इस कथन को गले उतारना कठिन जान पड़े तो मैं इसे और स्पष्ट करते हुए यह कहूँगा कि सूखे पेड़ भी हमें आकृष्ट कर सकते हैं। कम से कम मुझे तो करते हैं। मन के न जाने किस अनजान कोने में जाने कौन सा ऐसा भाव है जो इन पेड़ों से जुड़ाव महसूस करता है। मैं विश्वविद्यालय परिसर के सारे ठूठे पेड़ों को पहचानता हूँ। राह चलते जब इनपर नज़र पड़ती है तो जैसे उलझकर रह जाती है। उसमें भी अगर वो ठूठ शीशम का हो तो क्या कहना! जाने क्यों इन्हें देखकर अपनेपन का भाव में मन में उमड़ता है? ऐसा क्यों होता है? व्यक्ति की रुचि-अरुचि पर उसकी मनोदशा का बड़ा प्रभाव पड़ता है। एक समय जिस बात या जिस वस्तु के प्रति किसी की रुचि हो किसी अन्य दशा में उसके प्रति अरुचि भी हो सकती है। ऐसा प्रायः होता है कि मन की उद्विग्नता में अच्छे से अच्छा संगीत भी सुनना अच्छा नहीं लगता, स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन भी अरुचिकर लगता है तथा सुंदर से सुंदर दृश्य को भी आँख उठाकर देखने का मन नहीं होता। ऐसा क्यों होता है? ऐसी दशा का बड़ा सुंदर चित्रण 'प्रसाद' की इन पंक्तियों में है- "फैलती है जब उषा राग