रीतिरात्मा काव्यस्य
रीति का अर्थ - संस्कृत काव्य परंपरा में 'रीति' सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य वामन माने जाते हैं| रीति के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि,
'रीतिरात्मा काव्यस्य ; विशिष्टापदरचना रीति: |'
उन्होंने ही सर्वप्रथम गुण और अलंकार में भेद स्पष्ट किया| उनके अनुसार काव्य का नित्य धर्म माधुर्य, प्रसाद और ओज आदि गुण ही हैं तथा इन्हीं गुणों पर आधृत रीतियाँ ही काव्य की अंतरात्मा हैं| हिंदी साहित्य में रीति शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में हुआ है| अलंकार, रस,छंद इत्यादि काव्यगत विशेषताएँ जिनका ज्ञान काव्य रचना हेतु आवश्यक है, संयुक्त रूप से काव्य रीति कहलाती हैं|
*रीति कालीन काव्य का उद्भव-
हिंदी साहित्य के मध्यकाल का उत्तरार्द्ध (जो रीति काल के नाम से प्रसिद्ध है) की उतपत्ति के बीज कुछ तो तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक परिवेश में तथा कुछ भक्ति काल में ही निहित है| रीति कालीन कविता का मुख्य विषय शृंगार रहा है| इसी कारण पं विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे शृंगार काल कहा है| शृंगार रस का स्थायी भाव है रति और रति भाव एक मूलभूत मानवीय प्रवृति है| मानव ह्रदय में रति का उद्गम और संचार बड़ा ही स्वाभाविक है| अतः शृंगार विषयक कविताएँ हिंदी साहित्य के हर काल तथा हर धारा में लिखी जाती रही हैं| रीति काल से पूर्व भी विभिन्न रूपों में शृंगारिक तत्वों का प्रकाट्य होता रहा परन्तु रीति काल में शृंगार की धारा आध्यात्मिकता की उर्ध्व भूमि से उत्तर कर इहलौकिक प्रणय भूमि में प्रवाहित होने लगती है|
*रीति कालीन समाज तथा रीति कालीन काव्य की उत्पत्ति के कारक तत्व -
इस काल में सामंत वर्ग की स्थिती पुनः दृढ़ हो गई| सामंती रूढ़ियाँ पुनः सर उठाने लगी| भक्ति काल में कबीर आदि ने जिस तरह से रूढ़ियों और कट्टरवादिता के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद की थी उस तरह के स्वरों का अभाव हो गया| कट्टरवादिता पुनः बढ़ने लगी| धर्म-जाति आदि पर आधृत विभेद पुनर्स्थापित हो गया| भक्ति ने जिस मानवीय एकता के भाव को जन्म दिया था वह क्षीण होने लगा|
उन कवियों का अभाव हो गया जिन्होंने भक्ति के लिए कविता की थी, जिन्होंने भावावेश में काव्य रचा था| कवियों का एक नया वर्ग सामने आया जो राज्याश्रित था, जो आश्रयदाता की रुचि के अनुरूप काव्य रचन करता था| भक्ति काल के अधिकांश कवि जहाँ काव्यशास्त्र के ज्ञान से वंचित और निम्न वर्ग से सम्बद्ध थें वाही ये कवि दरबारी होने के कारण उच्च-वर्गीय थें तथा काव्य शास्त्र के भी पंडित थें|
भक्ति काल के प्रारम्भिक अवस्था में कबीर आदि संत कवियों ने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने का प्रयास किया, धार्मिक कट्टरता पर आघात किया तथा निअंकुश राजसत्ता से संघर्ष किया| इस सन्दर्भ में तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों पर भी एक दृष्टि डालना वांछित है|
अलाउद्दीन ख़िलजी के बाज़ार मूल्य नियंत्रण नीति से दिल्ली के आस-पास के किसान और छोटे व्यापारियों को काफी तकलीफ हुई| अपनी विशाल सेना पर धन-व्यय के लिए उसने सामान्य जनता पर कई तरह के कर लाद दिए| जनता का तो दूर छोटे भूमिपतियों का भी जीना दूभर हो गया| उसके विभिन्न सैनिक अभियानों के कारण हर ओ जान-धन की क्षति हुई| आगे चल कर फिरोज तुगलक और सिकंदर लोदी की असहिष्णु नीतियों के कारण हिन्दू जनता का जीवन यापन कठिन हो गया| उनसे अनेकानेक करों के साथ जज़िया नामक कर भी लिया जाने लगा|
कबीर आदि संतों ने इसके विरुद्ध आवाज़ बुलंद की| अपनी सीधी-सरल वाणी में उन्होंने राजसत्ता से ऊपर उस परम सत्ता की महिमा गाई| उन्होंने जाती-धर्म के भेद-भाव का विरोध किया, समानता का नारा दिया तथा हिन्दू और मुसलमान दोनों की धार्मिक रूढ़ियों पर प्रहार किया| संतों के प्रयास से तथा तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक परिवर्तनों के कारण धार्मिक कट्टरता कुछ कम हुई| भक्ति काल के उत्तरार्द्ध में सगुण काव्य की प्रधानता रही| सगुण भक्त कवियों ने भी राज सत्ता का विरोध किया, 'पातशाही' के खिलाफ रामराज्य का आदर्श प्रस्तुत किया| परन्तु इन सब के साथ ही सगुण कवियों ने वर्णव्यवस्था का विरोध नहीं किया किया बल्कि कुछ तो अपने उच्च वर्गीय संस्कारों के कारण तथा कुछ पौराणिक मान्यताओं से युक्त पृष्ठभूमि के कारण उनके स्वर वर्णाश्रम के पक्ष में ही मुखरित हुएँ|
सगुण काव्य के तत्वों ने ही अनजाने में रीति काव्य को जन्म दे दिया| राम और कृष्ण लोक रक्षक अवतारों पर आधारित होने के कारण सगुण काव्य शीघ्र ही स्थापित हो गया तथा पारम्परिक मान्यताओं से युक्त होने के कारण अत्यंत लोकप्रिय हो गया| परन्तु इसी क्रम में उसने पौराणिक रूढ़ियों को तथा ब्राह्मणवादी कट्टरता को पुनर्स्थापित कर दिया| कृष्ण काव्य की शृंगारिकता ने शृंगारिक कविता को जन्म दिया, जो कुछ ही समय बाद नायिका भेद और नख-शिख वर्णन में बदल गयी|
इस अरह हम देख सकते हैं की भक्ति कालीन कविता जहाँ हिंदी प्रदेश की जनता के मानसिक संघर्ष का संकेत देती है, वहीँ रीति कालीन कविता राजसत्ता के सम्मुख जनता के आत्म समर्पण का करुण चित्र प्रस्तुत करती है|
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