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आशा है।

                                                            *१ स्रष्टा उन दिनों सृष्टि करने में व्यस्त थे। प्रतिदिन ही वे किसी न किसी जीव की रचना करते थे और प्रत्येक जीव की रचना करते समय वे किसी विशेष गुण या प्रवृति को ध्यान में रखते थे। हाथी का सृजन उन्होंने बल को ध्यान में रख कर किया तथा घोड़े का सृजन हुआ गति को ध्यान में रख कर। इसी तरह विभिन्न प्रकार के जीवों की रचना होती गई और उनसे धरित्री सुशोभित होती गई। उस दिन वे कुछ उद्विग्न प्रतीत हो रहे थे। कारण यह था कि  वे अपनी कल्पना शक्ति की सीमा तक सृजन कर चुके थे परन्तु मानसिक तृप्ति उन्हें अब भी नहीं मिली थी। बड़े ही अन्यमनस्क ढंग से उन्हंने एक जीव की रचना शुरू की परन्तु आज  उनके मन में कोई विशेष गुण नहीं था, जिसके आधार पर वे अपनी रचना करते। सृजन क्रिया के संपादन के पश्चात जब उनकी दृष्टि अपनी रचना पर पड़ी, तब वे सोच में पड़ गए। यह नया जीव न हाथी के जैसा विशाल और बलवान ही था न घोड़े जैसा वेगवान्। आजतक स्रष्टा की कोई रचना व्यर्थ नहीं गई थी। परन्तु आज उन्हें अपनी रचना पर संदेह हो रहा था। "क्या इतने  विशाल, भयंकर और बलशाली जीवों

कबीर की भक्ति के सामाजिक सन्दर्भ की प्रासंगिकता पर विचार

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हर युग का साहित्य अपने समय के समाज से प्रभावित होता है। साहित्य या आध्यात्मिक चेतना के लिए समाज-निरपेक्ष होना संभव नहीं है। कबीर की आध्यात्मिक चेतना अथवा उनकी भक्ति की विशेषता यही है कि यह समाज से जुड़ी  हुई है। उनकी भक्ति में सामान्य गृहस्थों के लिए भी स्थान है तथा यह भौतिक जगत की भी पूर्णतः उपेक्षा नहीं करती है। उनकी कविता भी इसी कारण से विशिष्ट है। कबीर की कविता निरीह-शोषित जनता के साथ खड़ी होती है, उनका स्वर बनती है तथा शोषक सामंत वर्ग का ज़ोरदार ढंग से विरोध भी करती है। कबीर की कविता अथवा उनकी भक्ति या साधना-पद्धति की सामाजिक प्रासंगिकता पर विचार करने के क्रम में इस बात पर भी विचार करना होगा कि कबीर की भक्ति किन सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों का प्रतिफल है? सामाजिक परिवर्तन में उसकी भूमिका क्या है? तथा समाज के लिए उसकी उपयोगिता क्या है? कबीर मध्ययुगीन संत कवि है। मध्य-युग हिंदी साहित्य के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण काल रहा है। मध्ययुग का पूर्वार्द्ध जहाँ भक्ति आंदोलन का काल रहा है वहीँ इसका उत्तरार्द्ध घोर भौतिकवादी मान्यताओं वालें रीतिग्रंथकारों का भी काल रहा है। भारत में मध्यय